जीवन संध्या
(केवल कुछ पंक्तियाँ)
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आकाश तले है फूली फली
माटी से जो निकली मेरी कहानी
क्षण जीवन संध्या ढलने का अब आया,
क्यों मितवा नैनों में आये पानी ?
यह शून्य पंथ की यात्रा
ज्यों तैरा हवा पर एक बिरहा
यों गगन में हुई विसर्जित आत्मा
क्यों नैनों में पानी आये मितवा ?
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Friday, September 17, 2010
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