योग-मंत्र
(२००३-०४ में कभी)
उन दिनों मैं पीसीआरए में कार्यरत थी। गीता का संदेश -- योगः कर्मसु कौशलम् -- इसे ऊर्जा बचत के साथ जोडकर आस्था चॅनेल पर डालने के लिये एक सीरीयल के निर्माण की योजना हमारे कार्यालय ने बनाई क्यों कि कर्म-कुशलतासे ही ऊर्जा-बचत होती है। इस सीरीयल के लिये हम शीर्ष-गीत ढूँढ रहे थे।
मेरे प्रिय गायक पंडित जसराज का गाया राग कलावती मेरी अतिप्रिय श्रवण-श्रृंखला में है। इसके प्रारंभ में जो मंगल-स्तवन उन्होंने गाया है -- मंगल् भगवान विष्णुः मंगलं गरुडध्वजः..... वह कई कई दिनों तक मुझे हॉण्ट करता रहता है। जब भगवद्गीता का संदेश लेकर सीरीयल बनानेकी बात चली तब वही धुन मेरे मन में फिर प्रकट हुई और पहली पंक्ति बनी -- कर्म में हो कुशलता -- जोकि ठीक मंगल् भगवान विष्णुः की जगह फिट बैठती थी।
फिर चिन्तन करते करते अन्य ३ पंक्तियाँ भी रची गईं और हमारा शीर्ष गीत बन गया। हमारे प्रोड्यूसरने इसे श्री वाडेकरसे गवाया है जो ठीक -ठीक उसी धुन में तो नही पर बेहद श्रवणीय है।
इस सीरीयल के लिये पूरा गीता-पाठ मेरे पिताजी ने किया था । वह अब यू-ट्यूब पर उपलब्ध है। उसके प्रारंभ में मैंने यह शीर्ष गीत भी जोड दिया है।
कर्म में हो कुशलता
चित्त में समदर्शिता
बुद्धि में स्थितप्रज्ञता हो
पार्थ ये ही योग है।
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Monday, October 22, 2012
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