जीवन संध्या
(केवल कुछ पंक्तियाँ)
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आकाश तले है फूली फली
माटी से जो निकली मेरी कहानी
क्षण जीवन संध्या ढलने का अब आया,
क्यों मितवा नैनों में आये पानी ?
यह शून्य पंथ की यात्रा
ज्यों तैरा हवा पर एक बिरहा
यों गगन में हुई विसर्जित आत्मा
क्यों नैनों में पानी आये मितवा ?
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Friday, September 17, 2010
Friday, September 3, 2010
मारवा से -- हे सर्वात्मक
हे सर्वात्मक
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हे सर्वात्मक,
हे सर्वेश्र्वर,
हे गंगाधर,
हे शिवसुंदर !
जो भी है जग में
चेतन उसको
अपना कहिए,
करुणा करिए।
आदित्य होइए
तिमिर में,
हृद् - वेद मेरे
हृदय में,
सुजनत्व दें,
दें आर्यता
अनुदारता
मेरी हरिए।
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हे सर्वात्मक,
हे सर्वेश्र्वर,
हे गंगाधर,
हे शिवसुंदर !
जो भी है जग में
चेतन उसको
अपना कहिए,
करुणा करिए।
आदित्य होइए
तिमिर में,
हृद् - वेद मेरे
हृदय में,
सुजनत्व दें,
दें आर्यता
अनुदारता
मेरी हरिए।
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