Sunday, July 11, 2010

मारवा से -- व्यथा

व्यथा
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आई प्रौढता
इन पैरोंको
हात शताधिक
स्पर्श करें।
व्यथा किंतु यह
बचा न कोई
कांधे पर जो
हाथ धरे॥
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मारवा से -- स्वतंत्रता देवी की बिनति

स्वतंत्रता देवी की बिनति
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उमर हुई पूरे पचास की
उत्सव पर मेरे न करो
लो अब मैं ही हाथ जोडती
गलत राह पर तुम न चलो।

सूर्यवंश की दिव्य धरोहर
प्रिय पुत्रों है तुम्हें मिली
अंधियारे का पूजन करने
उलूक व्रत को तुम न धरो।

अज्ञानों के गले न माला
पहनाओ अभिमानों की
सडी रूढियों के कोटर में
दिवाभीत सम तुम न छिपो।

जीर्ण पात झड जाते तब ही
नई कोंपलें आती हैं
इक्कीसवीं है सदि सामने
सोलहवीं की राह न लो।

वेतन लेकर काम टालना
देशद्रोह यह है भारी
इधर उधर जन को दौडाना
काम टालना, अब छोडो।

जनसेवा का यह कार्यालय
गुफा न चोर लुटेरों की
टेबुल के ऊपर नीचे से
रिश्र्वतखोरी अब न करो।

महान पुरुषों के चौराहे पर
पुतले, केवल विडंबना
कभी चलो उन राहों पर भी
निरर्थ मत गुणगान करो।

सत्ता है तारक-सुधा कभी
या बन सकती मदिरा भी
सत्ता मंदिर में मदिरालय
गढने का मत पाप करो।

प्रकाश कण के बीज रोपते चलो
दीप से दीप जले
यहाँ भ्रष्टता, वहाँ विवशता
इनका रोना अब छोडो।

परपीडा है पाप, सदयता पुण्य
सूत्र यह ध्यान रहे
भला काज करता हो कोई
कुकुर भोंक उसपर न करो।

आह न लो सिर पर गरीब की
बिन मेहनत की रोटी न लो
मोल सदा समझो श्रम का
मत गुणीजनों का द्वेष करो।

कमी किसी की हो छोटी,
उसका ढोल नही पीटो
लो अब मैं ही हाथ जोडती
कमियों को पाटते चलो।

परदेसी भाषा भी सीखो
ज्ञान साधना रुके नही
किन्तु डूबती जब निजभाषा
परभाषा के पग न धरो।

भाषा डूबी अगर देश या
संस्कृति भी ना बच सकती
परभाषा के गुलाम होकर
अपने ही पर मत काटो।

कठिन साधना धन की भी हो
बैरागीपन ठीक नही
करो सुशोभित घर अपना
पर औरों का मत घर फूँको.

तरुणाई संपदा देश की
पौधेसम इसको सींचो
विकृत मनरंजन की मैली
गंगा से दूर ही रखो।

रहो सुजन लेकिन अन्यायी
दुर्जन का प्रतिकार करो
सज्जानता की आड में छिपकर
कायरता मत वरण करो।

कानूनों से ही केवल
ना मिट सकती है जाँत पाँत
बातें गढकर समानता की
भेदभाव मन में न धरो।

स्त्री का भी हक है समानता
गरिमा उसकी मत छीनो
देवी भी न उसे मानों पर
दासी कह शोषण न करो।

श्रद्धालू हो या नास्तिक हो
मानवता को ही पूजो
उच्च नीच का भेद घृणित है
उसके कूडे में न पडो।

मनुष्य कोई पशु नही है
स्मरण नित्य जिसके दिल में
वही नर बनेगा नारायण
ऐसे नर को शीश धरो।

लाखों जन मर मिटने पर ही
मिल पाई थी मैं तुमको
लो अब मैं ही हाथ जोडती
फिर न गँवाना अब मुझको।
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मारवा से -- निजधर्म

निजधर्म
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गुण दिन का होता प्रकाश है
रात्री का गुण श्यामलता
नभ का गुण है निराकारता
मेघों का गुण व्याकुलता।

श्रेयस्कर वह हो या ना हो
निजधर्म बिना है नही गति
कैद चराचर अपने गुण में
वहीं मुक्तता वहीं रति।

क्या कह सकते कभी धरा से
नदिया के सम बही चलो?
चकाचौंध बिजली को, फूलों पर
शबनम सी खिली रहो?

ऐसा ही मेरा होना भी
इसके जैसा एक यही
कालचक्र की अनंतता में
एक समान दूजा नाही।

अछेद्य मुझसे, अभेद्य मुझसे
भला -बुरापन मेरा
छूट गया गर शून्य के सिवा
बाकी रहा क्या मेरा?
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मारवा से -- केक का टुकडा

केक का टुकडा
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होटेल की बाल्कनी से
दयावान होकर फेंका,
चाँकलेट केक का
मोटा सा टुकडा
राह के मरियल कुत्ते के लिए ---

कुत्ता दौड चला
और होटेल के साये में खडा,
तार-तार कपडोंवाला
वह गंदा छोकरा भी।

छोकरा प्राणपण से दौडा
और कुत्ते को मात देकर
जीत लिया वह टुकडा ---
बचे नही कोई डर छीनने का,
इसलिए
ठूँस लिया तुरंत
पूरा टुकडा मुँह में
असभ्य हडबडी में।

बाल्कनी से देख रहा था दयावान
शिवास रीगल का ग्लास
होठों से लगाते हुए गुर्राया,
'ये हरामखोर आदमी के पिल्ले।'
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मारवा से -- जीवन

काव्यसंग्रह मारवा से
जीवन

गगरी में छोटी सी रहा जो ---- वह भी जीवन
जलधी में भयकारक तांडव ---- वह भी जीवन।
रश्मिरथों पर, अरूप होकर चढे गगन में,
श्याम नील घन बन कर बरसे ---- वह भी जीवन॥
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मारवा से -- जाते - जाते

जाते - जाते
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जाते - जाते गाऊँगा मैं
गाते - गाते जाऊँगा मैं।
जाने पर भी नीलगगन के
गीतों में रह जाऊँगा मैं॥
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पक्ष्यांच्या अभयारण्यांत --हिंदीसे अनुवाद -- टाकणे आहे

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तरच पाऊस पडेल -- बंगाली से अनुवाद --टाकणे आहे

Sunday, July 4, 2010

हिंदी अनुवाद -- खरा तो एकचि धर्म -- साने गुरुजी

खरा तो एकचि धर्म -- साने गुरुजी
खरा तो एकचि धर्म ------------- खरा है एकही धर्म -- (एकही धर्म है सच्चा )
जगाला प्रेम अर्पावे --------- जगतको प्यार बाँटे हम -(जगत् को प्यार दे पायें) To choose 1 of 2

जगी जे दीन अति पतित-------------- यहाँ जो दीन हैं - पतित
जगी जे दीन पद - दलित------------- यहाँ जो दीन - पद - दलित
तया जाऊन उठवावे-------------- उन्हें जाकर उठाये हम ।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

जयांना कोणी ना जगती-------------- जिन्हें कोई नही अपने
सदा जे अंतरी रडती-------------- दु:खी जो अपने अंतर में
तया जाऊन सुखवावे-------------- सुखी उनको कराये हम ।
जगाला प्रेम अर्पावे -------------- सभी को प्यार बाँटे हम॥

समस्ता धीर तो द्यावा-------------- कहीं धीरज बँधा पायें
सुखाचा शब्द बोलावा-------------- कभी हँसकर करें बातें
अनाथा साहय ते द्यावे------------- अनाथोंके हों पालक हम।
जगाला प्रेम अर्पावे -------------- सभी को प्यार बाँटे हम॥

सदा जे आर्त अति विकल------------ सदासे आर्त जो विकल
जयांना गांजती सकल-------------- लताडें हैं जिन्हे सबल
तया जाऊन हसवावे-------------- उन्हे चलकर हंसाये हम ।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

कुणा ना व्यर्थ शिणवावे ---------- किसी को व्यर्थ ना छेडें
कुणा ना व्यर्थ हिणवावे---------- किसी को व्यर्थ ना कोसें
समस्ता बंधु मानावे ---------- हरेक को बंधु जानें हम।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

प्रभूची लेकरे सारी ---------- प्रभू के ये सभी बच्चे
तयाला सर्वही प्यारी ---------- सभी उसके लिये प्यारे
कुणा ना तुच्छ लेखावे ---------- तुच्छता ना दिखायें हम।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

जिथे अंधार औदास्य---------- अंधेरा हो उदासी का
जिथे नैराश्य आलस्य ---------- निराशा या कि आलस का
प्रकाशा तेथ नव न्यावे ---------- उजाला ले के जायें हम।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

असे जे आपणांपाशी ---------- जगत् से जो भी है पाया
असे जे वित्त वा विद्या ---------- कमाया है जो धन विद्या
सदा ते देतची जावे ---------- उन्हे सबपर लुटायें हम।
जगाला प्रेम अर्पावे -------------- सभी को प्यार बाँटे हम
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बलसागर भारत
-- साने गुरुजी (मराठी)
-- अनुवाद -- लीना मेहेंदले (यह लोकप्रिय गीत जिस धुनमें मराठी में गाया जाता है,वही धुन हिंदी गीत के लिये लागू है।)
बलसागर होवे भारत।
विश्र्व में रहे अपराजित।।
ये कंकण बाँधा कर में
जीवन हो जनसेवामें
हों प्राण राष्ट्र के हित में
मैं मरने को भी उद्यत
बलसागर होवे भारत।।
वैभव दिलवाऊँ इसको
सर्वस्व सौंप दूँ इसको
तिमिर घोर संहारनको
तुम बंधु बनो सहायक
बलसागर होवे भारत।।
हाथों में हाथ मिलाकर
हृदयों से हृदय जुडाकर
एकता मंत्र अपनाकर
हो जाएं कार्योंमें रत
बलसागर होवे भारत।।
कर ऊँची दिव्य पताका
गूँजाओ गीत भारत का
विश्र्व में पराक्रम इसका
दिग्‌ दिगन्त गूँजे स्वागत
बलसागर होवे भारत।।
अब उठो श्रम करो सार्थ
दिखलाना है पुरुषार्थ
यह जीवन ना हो व्यर्थ
चमकाओ भाग्यका सूरज
बलसागर होवे भारत।।
भारत माँ फिर सँवरेगी
प्रभुता भी दिव्य पायेगी
विश्वमें शांति लायेगी
वह स्वर्णिम दिन है निश्चित
बलसागर होवे भारत।।
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