स्वतंत्रता देवी की बिनति
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उमर हुई पूरे पचास की
उत्सव पर मेरे न करो
लो अब मैं ही हाथ जोडती
गलत राह पर तुम न चलो।
सूर्यवंश की दिव्य धरोहर
प्रिय पुत्रों है तुम्हें मिली
अंधियारे का पूजन करने
उलूक व्रत को तुम न धरो।
अज्ञानों के गले न माला
पहनाओ अभिमानों की
सडी रूढियों के कोटर में
दिवाभीत सम तुम न छिपो।
जीर्ण पात झड जाते तब ही
नई कोंपलें आती हैं
इक्कीसवीं है सदि सामने
सोलहवीं की राह न लो।
वेतन लेकर काम टालना
देशद्रोह यह है भारी
इधर उधर जन को दौडाना
काम टालना, अब छोडो।
जनसेवा का यह कार्यालय
गुफा न चोर लुटेरों की
टेबुल के ऊपर नीचे से
रिश्र्वतखोरी अब न करो।
महान पुरुषों के चौराहे पर
पुतले, केवल विडंबना
कभी चलो उन राहों पर भी
निरर्थ मत गुणगान करो।
सत्ता है तारक-सुधा कभी
या बन सकती मदिरा भी
सत्ता मंदिर में मदिरालय
गढने का मत पाप करो।
प्रकाश कण के बीज रोपते चलो
दीप से दीप जले
यहाँ भ्रष्टता, वहाँ विवशता
इनका रोना अब छोडो।
परपीडा है पाप, सदयता पुण्य
सूत्र यह ध्यान रहे
भला काज करता हो कोई
कुकुर भोंक उसपर न करो।
आह न लो सिर पर गरीब की
बिन मेहनत की रोटी न लो
मोल सदा समझो श्रम का
मत गुणीजनों का द्वेष करो।
कमी किसी की हो छोटी,
उसका ढोल नही पीटो
लो अब मैं ही हाथ जोडती
कमियों को पाटते चलो।
परदेसी भाषा भी सीखो
ज्ञान साधना रुके नही
किन्तु डूबती जब निजभाषा
परभाषा के पग न धरो।
भाषा डूबी अगर देश या
संस्कृति भी ना बच सकती
परभाषा के गुलाम होकर
अपने ही पर मत काटो।
कठिन साधना धन की भी हो
बैरागीपन ठीक नही
करो सुशोभित घर अपना
पर औरों का मत घर फूँको.
तरुणाई संपदा देश की
पौधेसम इसको सींचो
विकृत मनरंजन की मैली
गंगा से दूर ही रखो।
रहो सुजन लेकिन अन्यायी
दुर्जन का प्रतिकार करो
सज्जानता की आड में छिपकर
कायरता मत वरण करो।
कानूनों से ही केवल
ना मिट सकती है जाँत पाँत
बातें गढकर समानता की
भेदभाव मन में न धरो।
स्त्री का भी हक है समानता
गरिमा उसकी मत छीनो
देवी भी न उसे मानों पर
दासी कह शोषण न करो।
श्रद्धालू हो या नास्तिक हो
मानवता को ही पूजो
उच्च नीच का भेद घृणित है
उसके कूडे में न पडो।
मनुष्य कोई पशु नही है
स्मरण नित्य जिसके दिल में
वही नर बनेगा नारायण
ऐसे नर को शीश धरो।
लाखों जन मर मिटने पर ही
मिल पाई थी मैं तुमको
लो अब मैं ही हाथ जोडती
फिर न गँवाना अब मुझको।
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Sunday, July 11, 2010
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