Sunday, July 11, 2010

मारवा से -- व्यथा

व्यथा
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आई प्रौढता
इन पैरोंको
हात शताधिक
स्पर्श करें।
व्यथा किंतु यह
बचा न कोई
कांधे पर जो
हाथ धरे॥
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1 comment:

हरकीरत ' हीर' said...

व्यथा
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आई प्रौढता
इन पैरोंको
हात शताधिक
स्पर्श करें।
व्यथा किंतु यह
बचा न कोई
कांधे पर जो
हाथ धरे॥

बुढ़ापे ki सच्चाई पेश करती कविता .....

बहुत कम शब्दों में सार्थक बात ......!!