व्यथा
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आई प्रौढता
इन पैरोंको
हात शताधिक
स्पर्श करें।
व्यथा किंतु यह
बचा न कोई
कांधे पर जो
हाथ धरे॥
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Sunday, July 11, 2010
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As I read about the sad demise of tatyasaheb, and articles quoting his poetry, it dawned on me that I could attempt their translation in Hindi.Here are 108 out of his more than 1000 poems in 13 collections. I published a book ANANDLOK and a recital cassette. See my site http://www.geocities.com/hindikusumagraj
1 comment:
व्यथा
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आई प्रौढता
इन पैरोंको
हात शताधिक
स्पर्श करें।
व्यथा किंतु यह
बचा न कोई
कांधे पर जो
हाथ धरे॥
बुढ़ापे ki सच्चाई पेश करती कविता .....
बहुत कम शब्दों में सार्थक बात ......!!
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