Sunday, September 13, 2015

वीर मराठे दौडे सात दिवाने - कुसुमाग्रज (तुषार जोशी नागपुर)


(माझी टिप्पणी -- मा. कुसुमाग्रजांची ही आवडती कविता आहे -- वेडात दौडले वीर मराठे सात. मी त्यांच्या कवितांचा एक - एक अनुवाद करत गेले तेंव्हा निवडलेल्या काही कविता मला सोडून द्याव्या लागल्या कारण त्या छंदात आणि ते भाषासौष्ठव उतरवून अनुवाद जमणार नाही असे मला वाटले. या कवितेतही पहिल्याच ओळीत ड,व, र, म अशा अक्षरांमुळे जो वीररस प्रकट होतो  तो हिंदीत ुतरणार नाही असे मला वाटले। वेडात -- या शब्दासाठी दीवाने हा शब्द वापरून तुषार जोशींनी ही कमाल करून दाखवली)

(मा कुसुमाग्रजकी यह प्रिय कविता थी -- वेडात दौडले वीर मराठे सात। मैं उनकी एक-एक कविता चुनकर अनुवाद कर रही थी तो इस कविताने मुझे बडा सताया। कविताका छंद भी रहे और भाषासौष्ठव भी रहे, यह मेरी चाह थी। लेकिन इस कविताके शब्दोंमें जो अक्षरनाद था-- उसीसे वीररस प्रकट हो सकता था। वह अक्षरनाद जरा भी कमजोर पडा तो वीरभावनाको प्रज्वलित नही कर सकता। पहली पंक्तिमें ड, व, र, म जैसे अक्षरोंकी टणत्कार हिंदीमें भी उतरे तो कैसे । कई दिन जूझनेके बाद मैंने इस कविताके अनुवाद का प्रयास छोड दिया। और एक दिन अचानक देखा कि वेडा शब्दके लिये दिवाने शब्दका चयन करके तुषारजीने वह सारा भाव संभाल लिया है। वाह तुषारजी वाह। आपका यह अनुवाद मेरे दिलके इतनाही करीब है, मानों मैंने ही किया हो।)

वीर मराठे दौडे सात दिवाने - कुसुमाग्रज 

-- तुषार जोशी नागपुर

छत्रपती शिवाजी महाराज के सात जाँबाज सरदारों की दिलेरीकी कहानी श्रेष्ठ कवि कुसुमाग्रज जी ने सात नामक उनकी कविता में चित्रित की है। आज उस कविता को प्रस्तुत करता हूँ।
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संदर्भ -- मुगल सेनासे हारकर सात सरदार वापस आ गये तब शिवाजीने उन्हें थोडा फटकारा। इसी बातको दिलपर लेकर वे  सातों फिर दौड गये, मुगल छावनीमें मारकाट मचाई पर वापस नही लौट सके। उन्हींकी कथा ।
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वीर मराठे दौडे सात दिवाने - कुसुमाग्रज

धन्य हो गये सुनकर आज कहानी
भाग आये रण से अपने सेनानी
औरतें भी होंगी शर्म से पानी पानी

दिन में ये कैसा घेरा अंधेरे ने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने

वो सभी शब्द थे कठोर पीडादायी
जला गये छूकर दिल की गहराई
भागना नहीं है रीत मराठी भाई

ये भुला गये, आये क्या मुँह दिखाने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने

मुँह फेरा था  पर आँख हुई थी गीली
सरदारों ने वो बातें दिल पर ले ली
भाले उठा, चल पडे, विदा भी ना ली

धूल के बनाये बादल सात हवा ने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने

दातोंमें दबाकर होठ, वीर वे निकले
पटबंद सभी सीनों पर हो गये ढीले
आँखोंमें उठा तुफान, किनारे गीले

म्यानोसे निकले तलवारों के सीने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने

भौचक्की सेना देखे ये रह रह के
अपमान बुझाने छावनीमें गनिमोके
घुस गये दिवाने हथेली पे सर ले के

उल्कायें बरसी सागर को यूँ जलाने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने

आग ही आग थी बाजू से उपर से
सैकडो जगह से उन पर भाले बरसे
भीड में खो गये सात यूँ दिलेरी से

सातों पंछी आखिर तक हार ना माने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने

पत्थर पर दिखता निशान उन टापोंका
पानी में देखो रंग मिला है लहूका
अब तलक क्षितिज पर बादल उस माटीका

अब तक गाता है कोई उन के गाने
वीर मराठे दौडे सात दिवाने
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