खोज
सृष्ट शक्ति के
अंतहीन भंडार में,
मैं खोजता था
तुम्हारा रत्नजटित मुकुट,
चराचर के सारे
उन्मेषों का
नियमन करनेवाला।
मुझे तुम दिखे
और दिखे भी नही
दिखे तब मैं था एक संन्यासी,
विश्र्व के व्यवहार से
अलग - थलग, खोया हुआ
और जब नहीं दिखे
तब मैं था एक कठोर पुरुष
सारी धूसरता पर
छुरियाँ भोंकनेवाला
मारणहार,
मेरी अपनी ही कविता का।
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Saturday, December 12, 2009
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