हे सर्वात्मक
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हे सर्वात्मक,
हे सर्वेश्र्वर,
हे गंगाधर,
हे शिवसुंदर !
जो भी है जग में
चेतन उसको
अपना कहिए,
करुणा करिए।
आदित्य होइए
तिमिर में,
हृद् - वेद मेरे
हृदय में,
सुजनत्व दें,
दें आर्यता
अनुदारता
मेरी हरिए।
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Friday, September 3, 2010
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1 comment:
bahut he sunder
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