Saturday, May 10, 2008

कुसुमाग्रज -- कवि परिचय

कुसुमाग्रज -- कवि परिचय
कवि परिचय
मराठी के मूर्धन्य कवि और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्री वि.वा. शिरवाडकर तथा तात्यासाहेब का जन्म पुणे में १९१२ में हुआ। लेकिन स्कूली शिक्षा नासिक में हुई। कर्मक्षेत्र भी मुंबई एवं नासिक ही रहे। १७ वर्ष की आयु में जहाँ एक तरफ वे मैट्रिक पास हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर उनकी कविताएं भी प्रकाशित होने लगी थीं।
कविता लेखन के लिए उन्होंने अपना उपनाम लिया- कुसुमाग्रज (क्योंकि उनकी छोटी बहन थी कुसुम और उन दिनों मराठी के श्रेष्ठ साहित्यकार गोविंदाग्रज ने यह स्टाईल फैशन में लाई थी)।१९३२ में नासिक के कालाराम मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए जो सत्याग्रह हुआ उसमें वे भी शामिल हुए। उसके उपरांत १९३४ में मराठी और अंग्रेजी विषयों में बी.ए. किया। उसके बाद कई नियतकालिकों का संपादन व लेखन करते रहे। फिल्म 'सती सुलोचना' की पटकथा लिखी और उसमें लक्ष्मण की भूमिका भी निभाई। गद्य लेखन शिरवाडकर के नाम से ही किया जबकि सारा कविता लेखन कुसुमाग्रज नाम से करते रहे।
उनका बहुचर्चित काव्य संग्रह 'विशाखा' १९४२ में अगस्त क्रांति की पार्श्र्वभूमि पर प्रकाशित हुआ। हिंदू पंचांगों में माना जाता है कि विशाखा नक्षत्र से ही वैशाख महीने का जन्म हुआ और इस महीने में सूरज अपनी पूरी ऊँचाई पर आकर आग उगलता है। 'विशाखा' में प्रकाशित क्रांति की कविताएं वैसी ही प्रखर थीं। कई युवा लेखकों और कवियों ने उनसे प्रेरणा ली। कवि कुसुमाग्रज का आधिपत्य मराठी साहित्य पर तब से लेकर आज तक छाया हुआ है।
उनकी ग्रंथ-संपदा हैः चौदह कविता-संग्रह, आठ कथा-संग्रह, बीस नाटक, सात नाटिकाएं, सात ललित निबंध-संग्रह, दस संपादित कविता-संग्रह और तीन उपन्यास। 'नट सम्राट' नाटक के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और १९९४ में इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। ज्ञानपीठ की रकम में अपनी पूंजी जोड़कर उन्होंने 'कुसुमाग्रज प्रतिष्ठान' की स्थापना की। इसके कई उपक्रमों में हर दूसरे वर्ष दिया जाने वाला 'जनस्थान पुरस्कार' और 'गोदावरी पुरस्कार' महत्वपूर्ण हैं। साहित्यिकार एवं सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्तियों को इन पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है।
कुसुमग्राज ने कवि होने के साथ समय-समय पर सामाजिक गतिविधियों को जिस तरह दिशा दी उससे उनकी संवेदनशील, भावानुभूति एवं उनका विशाल दृष्टिकोण सामने आता है। कालाराम मंदिर प्रवेश में सहयोग, लोकवादी मंडल की स्थापना, 'जागतिक मराठी परिषद्' और नासिक सार्वजनिक वाचनालय की कई वर्षों तक अध्यक्षता, फिर नासिक के पास आदिवासी बच्चों में पढ़ाई के साथ काव्य और ललित-कला-बोध हेतु काम, नासिक में 'ग्रंथ यात्रा' के आयोजन और सरकारी कामकाज में अंग्रेजी की जगह मराठी को पुनर्जीवित करने के लिए उनके प्रयास इस बात के साक्षी हैं। १९९२ में उनके सम्मान में अमरीका की इंटरनेशनल स्टार सोसाइटी ने पुनर्वसु नक्षत्र के पास पाए जाने वाले रोह नामक तारे को 'कुसुमग्राज' का नाम दिया है।

3 comments:

sujay said...

निर्माणों के पावन युग में

निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें !
स्वार्थ साधना की आंधी में वसुधा का कल्याण न भूलें !!

माना अगम अगाध सिंधु है संघर्षों का पार नहीं है
किन्तु डूबना मझधारों में साहस को स्विकार नही है
जटिल समस्या सुलझाने को नूतन अनुसन्धान न भूलें !!

शील विनय आदर्श श्रेष्ठता तार बिना झंकार नही है
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी यदि नैतीक आधार नहीं है
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में संस्कृति का सम्मान न भूले !!

आविष्कारों की कृतियों में यदि मानव का प्यार नही है
सृजनहीन विज्ञान व्यर्थ है प्राणी का उपकार नही है
भौतिकता के उत्थानों में जीवन का उत्थान न भूलें !!

लीना मेहेंदळे said...

sundar kavita. Pan kunachi ?

sujay said...

madam he gana mi vanvasi kalyan ashramacha karyakramat aikala , mi pushkal jananna vicharala pan mala kavicha nav samajala nahi.pan ya ganyatale vichar ani tumhi je blog var va pustakatun lihita tyamagachi bhavana mala ekach vatali mhanun mi hi kavita tumhala pathavali,mi kavicha nav shodhanyacha prayatna karto