Sunday, October 28, 2012

कुसुमाग्रजांचे इतर काही अपूर्ण अनुवाद

कुसुमाग्रजांचे  इतर काही अपूर्ण अनुवाद
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हे कुसुमाग्रज, आप
वासी हो गगनों के
पर कृतार्थ कर रख्खी
माटी मराठी की।
-- वसंत बापट यांनी वाहिलेली श्रद्धांजली
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रे अनन्त है मेरी ध्येयासक्ति
और अनन्त है मेरी आशा
किनारा तुझ पामर के लिये
मुझ नाविक को दसों दिशा
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पंढरी के राय जी
हे त्रिलोकपाल जी,
क्या तेरी गत बनी
तेरे ही धाम में
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अमर्याद है मित्र तेरी महत्ता
मुझे ज्ञात मैं एक धूलीकण
पखारनेको  फिर भी तुम्हारे चरण
ये धूली ही है मेरा आभूषण
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गोप
कौन फिरे गोप इस अपार चराई में
बाँसुरी की तान चढी गगन की उतराई में।
सुनकर संगीत नाद
झूमे धेनु मगन
अगणित आनंद लहरी मूर्त होतीं सघन
मिटे प्यास मिले छाँव आकाश की नदिया में
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अपूर्ण
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मार्ग
चल रहा हूँ चल रहा हूँ
 अंत चलने का नही है
चल रहा हूँ किधर क्योंकर
प्रश्न यह बाकी नही है।
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इसलिये छोडी है मैंने
आस भी अब मंजिलोंकी
श्रेय चलने का है केवल
धर्म अब दूजा नही है।
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अनुवादासाठी ठरवलेल्या इतर कविता
गुराखी (गोप)
उषासूक्त
खंत नाही तुला
इंदु-बिंदु ची कविता
चार कोळसेवाले
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