भीड
महाप्रलय की विकराल लहरों से
एक एक बूँद अलग कर देखी
तो किसी न किसी दूब पर
वह कभी थरथराई थी।
बिजली के भीषण तांडव से
एक एक किरण अलग कर देखी
तो किसी गुलाब पँखुडी पर
वह कभी झिलमिलाई थी।
निर्दय क्रोध में दौड रही भीड से
एक एक आदमी अलग कर देखा
तो करुणा उसके हृदय में भी
कभी छलक आई थी॥
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Sunday, March 14, 2010
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