Sunday, March 14, 2010

छन्दोमयी से -- आनंदलोक

आनंदलोक

आनंदलोक में मेरे
चाँद डूबता नहीं
प्रेम का सागर अथाह
तांडव लाता नही।

आनंदलोक में मेरे
सदा वसंत का गान
आम्रशाखाओंसे फूटे
कोकिल की पंचम तान।

सात रंगों की महफिल,
बहती चले हवाओं पर,
यहाँ मृत्यु भी आती है,
मयूरपंखी शांति लेकर॥
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