Saturday, August 6, 2011

महावृक्ष से -- छुरों का गाँव

छुरों का गाँव

छुरों ने कब्जा किया वह गाँव,
अब वहाँ आदमी बचा ही नही।

सारी बस्ती बस छुरों की।
बाल छुरे, तरुण छुरे, वृद्ध छुरे,
नर छुरे और मादा छुरे।
उनकी संतान भी
छुरों की।

घर में छुरे, रास्तों में छुरे, बाजारों में छुरे,
मंदिर में भी, मधुशाला में भी छुरे।

गाँव की सीमा पर
मानव-रक्त-रंजित
टंगा है एक लाल झंडा,
और चौराहे पर विशाल पुतला,
एक ऐतिहासिक छुरे का।

पुतले के नीचे,
चौथरे पर बैठे,
वृद्ध छुरा कथा कहे
अपने पराक्रम की,
कहाँ, कैसे मारे उन मानवों की।

बाल छुरे पूछते हैं जलते अंगार से,
बाबा, यहाँ तो
आदमी सारे तमाम हुए
अब कहाँ दिखायें हम अपना पराक्रम ?

वृद्ध छुरे ने कहा, मेरे बच्चों,
जिनके पाँव घुसे रहें घर के अंदर
उनका क्या पराक्रम
जाओ, बाहर की दुनियाँ में जाओ,
वहाँ होंगे करोडों मानव,
और उनकी मानवता कुतरनेवाले
असंख्य चूहे भी।

जाओ, उन चूहों से दोस्ती करो,
वही बनेंगे पथदर्शक और तारणहार,
करने से देशाटन,
लाखों मिलें आदमी मारने को,
पनपेंगे चूहे भी असंख्य
गाँव गाँव में तुम्हे तारने को।
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