Saturday, August 6, 2011

वादळवेल से-- दुर्गारूप

दुर्गारूप

यह दुर्गामाता
जब रूप लेती रणरागिणि का,
तब भी उसके एक हाथ में
भरा होता है अमृत कलश,
वही आज है हाथ में
मेरी मातृभूमि के भी।

और बाकी सत्रह हाथों में
बलशाली अजिंक्य शस्त्र
करने असुरों का संहार
और रक्षा अमृत कलश की।

वही आज हैं ----
और सदैव होने चाहिए
मेरी मातृभूमि के भी।
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