अस्वीकार
भक्तों का जयघोष हो रहा
मंदिर को है रथ चला
पर पहिए में रक्त किसीका
लगा हुआ है।
माफ करना मेरे मित्रों,
जयघोष तुम करते रहो,
तुम्हारे मन जैसा,
मेरा मन नही जाता
मंदिर की ओर।
वह चला
रक्त की रेषा पकड कर
पीछे की ओर
पीछे की ओर।
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Saturday, August 6, 2011
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