आज दोपहर
यह पंछी तो
बैठा मेरे सम्मुख था,
आज सकारे।
उषकाल के
नभ का टुकडा,
उतर पडा था मेरे द्वारे।
अगम शक्ति ने
दान दिए जो
आंचल मेरे,
एक कौतुक तो
उनमें से
यह पंछी भी था।
पर कौन शिकारी,
आज दोपहर
क्रूर कर्म कर गुजर गया था,
विद्ध-शर उर को
लिए यह
मृत पडा था।
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Sunday, August 7, 2011
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