दीप जलाओ
हुए देवता प्रसन्न बोले,
माँगो जो कुछ भी चाहे,
शस्त्र चाहिए बोला मानव,
पराक्रमी को सब साधे।
मिला शस्त्र और बनी रणांगण
सारी पृथ्वी, हृदय विदारक,
रक्त नहाया मानव फिरसे
खडा द्वार पर बन कर याचक।
क्या है चाह ----- शस्त्र नही अब,
शास्त्रों से मंगल हो जीवन
ज्ञान साधना से ईश्र्वरता,
स्वर्ग धरा का होवे मीलन।
शस्त्र मिला था, शास्त्र भी मिला,
स्वर्ग रहा स्वप्नवत् अभी भी,
हताश मानव निगर्व होकर,
चला प्रभू के सन्निध फिर भी।
चाहता क्या है ----- मूढ बना मैं,
अंधियारे में राह दिखाओ।
हँसे देवता ---- तुझमें ही है,
मानवता का दीप जलाओ।
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Sunday, August 7, 2011
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