Saturday, August 6, 2011

महावृक्ष से --अनजाने

अनजाने

इस रास्ते के नीचे से
चलते हैं रेले अंगारों के
यह जाना ही न था।

आंगन से फूल चुनकर
सुगंधी सौंदर्य
दिशाओं में बिखेरता
चलता ही रहा मैं।

पता ही न चला
कब मेरे बिन जाने
रास्ते के वे अंगार
नीचे से पहुँचे
मेरी टोकरी में

और जगह ले ली
मेरे ओस-भींगे फूलों की
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