आखिरी कमाई
मध्यरात्रि बीत चुकी जब,
शहर के पाँच पुतले
एक चबूतरे पर
बैठे दुखडा बाँटने।
ज्योतिबा फुले ने कहा
मैं केवल मालियों का रहा
छत्रपति शिवराय बोले
मैं भी मराठों से बाहर कहाँ।
आंबेडकर ने कहा,
मैं बौद्ध केवल जाना गया
लोकमान्य तिलक के आँसू बहे --
केवल चित्पावन ब्राह्मणों का मैं।
गांधी का पुतला
रूँधे गले से बोला
फिर भी तुम भाग्यवान सारे।
एक जमात कम से कम
पीछे है तुम्हारे।
मुझे देखो, मेरे पीछे
खडी हैं केवल,
सरकारी दफ्तरों की
पीली दीवारें।
----------------------------------------------------
Sunday, August 7, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment