पुकारा है तुमने
पर्जन्य के पानी से,
जंगलों के गान से,
पुकारा है तुमने,
मैंने सुना नही।
अरुण के प्रकाश में,
नक्षत्रों के आकाश में,
प्रगटा तेरा रूप,
मैंने देखा नहीं।
दुखियों की वेदना में,
सज्जानों की साधना में,
सीमाहीन घर तुम्हारा,
मैंने जाना नही।
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Saturday, August 6, 2011
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