पुतले मान रहे आभार
दिनांक ९ अगस्त,
विदित हो ------
आपके भेजे हार पहुँचे,
जयघोष पहुँचे,
जो कल्पनातीत थे,
वह लष्कर के सैल्यूट भी पहुँचे।
फाँसी पर चढते हुए,
घर बार को फूँकते हुए,
स्वतंत्रता की वेदि पर
रक्त तर्पण करते हुए,
हमारे कुछ सपने थे ---
कि रंक के माथे छप्पर चढे,
नंगे शरीर को मिलें कपडे,
आधे पेट को पूरी रोटी हो,
स्वतंत्रता हमारी सुफल हो।
जयघोष के थमने पर,
उत्सव दीपों के बुझने पर,
नीरव मध्य रात्रि में,
आये झुण्ड गीधों के,
चोंच में लिए हुए,
टुकडे उन सपनों के।
वह टुकडे भी पहुँचे --
आभार !
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Sunday, August 7, 2011
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