मेहमान
अंधेरे के घर में
प्रकाश बना मेहमान,
क्या हो आदान - प्रदान,
जाने न कोई।
दें, गर आलिंगन,
गलती हैं दोनों देह,
स्पर्श हो असह्य,
परस्परों का।
भाषा भी भिन्न यहाँ
कैसा कुशल मंगल,
खडे अशब्द अचल,
रखकर दूरी।
आखिर उठ चला प्रकाश,
सुझाया जाते जाते,
मिलन बेला तय करें,
भोर और गोधूली।
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Saturday, August 6, 2011
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