Monday, August 8, 2011

मुक्तायन से -- सूर्यास्त से

सूर्यास्त से

सूर्यास्त से
ये चंद किरण
तोड लाया हूँ मैं।
आजकी असह्य,
भयानक
तूफान भरी रात के लिए।

शायद नहीं ये
देंगे प्रकाश,
नहीं जला पायेंगे
ज्योत से ज्योत।
रखेंगे केवल जागृत
सूर्योदय कल का,
तुम्हारे व मेरे
अंतस् की आशा का।
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