Sunday, August 7, 2011

मुक्तायन से -- गर्भगृह

गर्भगृह

पधारिए
हमारा मंदिर देखने आए
आपका स्वागत है।
मंदिर का स्वर्ण शिखर तो आपने देख ही लिया
इन नक्काशीदार चाँदी के दरवाजों की
महीन कारीगरी भी देखिए।

आइए अब आगे चलते हैं ----
यह विस्तृत सभामंडप,
ऊँचे दीपस्तंभ,
फूल - मालाएँ, प्रसाद भंडार
भक्तगणों के रेले
उनको संचलित करने को लगे हुए लोहे के चैनल्स,
ये केवल पूर्वी दरवाजे के लिए हैं।

मंदिर के तीन द्वार हैं --------
उत्तर, पूर्व और दक्षिण।
उत्तर द्वार को तो आपने देखा ही है !
उससे आती हैं शिफॉन की साडियाँ --
और रोल्स रॉइस गाडियाँ,
उन्हें संचलित करने की आवश्यकता नही
वे ही संचालक हैं,
माई बाप हैं।

वैसे दक्षिण द्वार हम कम ही खोलते हैं
उधर का रेला गरीब -दुखियारों का है
दक्षिण द्वार से दुतरफा
ऊँची, लम्बी, बाडें बनाई हैं ---
वो क्या है कि उधर की हवा
उत्तर द्वारवालों को
परेशान करती है ---
पसीने की हवा
मिट्टी - सने अंगों की हवा
सादे पानी में धुले कपडों की हवा ---

पर श्रीमान् व्याकुल न हों,
देखें गर्भगृह का द्वार,
और अंतरंग
हीरे पन्नों से जडा यह छत्र
यह चंदोबा
हाँ, भगवान आजकल इस गर्भगृह में नहीं हैं।

वो क्या है कि,
दक्षिण द्वार के हर भक्तगण को
प्रवेश नहीं दे सकते
किसी को रोकना भी पडता है।

सो एक कोढी कई दिनों तक बैठा रहा,
फिर उसने जोर की पुकार लगाई,
हे प्रभु, दर्शन तो दे दे।
और हमारे भगवान थे
कि उठकर चल दिए
तब से रह रहे हैं
उन्हीं दलितों की झुग्गियों में
क्या बताऊँ आपसे,
वह तो अछूत हो गये हैं।

वैसे आप परेशान न हों,
दूसरी मूर्ति का ऑर्डर दिया जा चुका है।
इतालियन संगैमरमर की मूर्ति,
प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियाँ भी पूरी हैं।
राजे रजवाडों को निमंत्रण है।

देव के गहनों को गढने
सुनार जुटे हैं --
और रेशम के कारीगर,
और हलवाई,
और पुजारी -------
भगवान से भी कहा है,
वापिस आ जाओ

और शायद वह आ भी जाए,
लेकिन हमारी समिति अभी
निर्णय नही कर पाई है
झुग्गियों, कोढियों के बीच रहे उसको
मंदिर प्रवेश दें या नही?

फिर भी श्रीमन्,
फिलहाल आप आएँ
अन्य झाँकियाँ देखें
गर्भगृह सलामत तो भगवान पचास।
मंदिर में आपका स्वागत है।
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झ््रइस कविता का भावानुवाद मुक्त रूप से किया गया है, इसमें
कविता के मूल फॉर्मेट से हटकर थोडी स्वतंत्रता लेते हुए फैला कर
अनुवाद किया गया है। .

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