Sunday, August 7, 2011

मराठी माटी से --हम दोनों

हम दोनों

मैं और मैं, हम दोनों
एक ही घर के वासी,
सोच अलग है, दिशा अलग,
यह भोगी, यह संन्यासी।

यह रख्खे लेखा जोखा
पाई पाई रुपयों का
यह मुग्ध रसिक है
नक्षत्रों के गीतों का।

यह मित्रों, सखियों बीच,
मौज से दिन काटे
यह एकाकी, हृदय व्यथा
भी ना बाँटे।

नीति, रीति का कर विवेक,
यह प्रवाह के साथ चले
यह स्वैर, अनागर, स्वच्छंदी,
कोई बंधन ना पाले।

यह भ्रमर सा रसिक,
खोज नित नई करे
यह चिरंतन का पथिक,
शून्य पथ पर चले।

मैं और मैं, हम दोनों
रहने को एक ही घर,
दो ध्रुवों का मिलन यहाँ,
दो ध्रुवों की दूरी पर।
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