Monday, August 8, 2011

मुक्तायन से -- वृक्ष

वृक्ष

तुम ही हो वर्षा,
तुम ही हो ग्रीष्म,
मैं केवल एक वृक्ष
अंबर में धँसा हुआ।

झेलता हूँ तेरी बारिश,
तेरी गरमी,
तेरा तूफान,
भीतर तक थका हुआ॥
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