Saturday, August 6, 2011

महावृक्ष से --वंदे -- एक नाटय-प्रसंग

वंदे -- एक नाटय-प्रसंग

स्थल--
शहर के बीचोबीच
शानदार कूडे का ढेर,
तस्करों के धन जैसा
चहुँ ओर से फूलता फैलता।
और
अपनेपन से भर कर,
रास्ते पर अतिक्रमण
करता हुआ बारामदा
सामने के घर का।

पात्र--
कूडे को बिखेरकर
अन्न कण जुटानेवाला
चिंदी - चिंदी कपडोंवाला
पाँच सात बरस का
कार्यमग्न छोकरा,
और दूसरा मैं,
यह असंस्कृत दृश्य
सामने के बारामदे से
दुखभरी निगाह से
देखनेवाला।

प्रस्ताव--
मैंने दिलदार होकर
छोकरे को बारामदे में बुलाया
करने को सांस्कृतिक उन्नयन
पढाई का प्रस्ताव किया
आओ आरंभ करें अपने देश से,
कहो, वंदे मातरम्।

परिणति--

बडा चमत्कार हुआ,
वह छोकरा धुएँ के बादल सा
आकाश तक पसर गया
और उस ऊँचाई से
दिशाओं को झकझोरता हुआ बोला
वंदे भाकरम्॥
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