Saturday, August 6, 2011

महावृक्ष से --वे भी आदमी हैं

वे भी आदमी हैं

वे भी आदमी हैं
पर झुण्ड में गिनानेवाले,
झुण्ड में ही ममरनेवाले,
उनका जीवन, मरण
निराशय, निराकार

पिंडकी विभिन्नता
पुँछ गई पूरी तरह,
देखिए उदाहरण स्वरूप,
गॅस्ट्रोसे तीनसौ मरे,
बाढ में चारसौ बहे,
दो जमातों के झगडे में
आज पाँच सौ गये
इत्यादि इत्यादि।

यहाँ आदमी का
नही है महत्व,
महत्व है गॅस्ट्रोका,
बाढ का, दंगों का।

संख्यात्मक जीवन और
संख्यात्मक मरण।
जीवन और मृत्यु,
दोनों ही अलक्षित, निरर्थक।

पर एक चतुराई उन्होंने करी,
बजाए मरने के
कॅन्सर या टयूमर से,
उन्होंने मौत ली
गॅस्ट्रोकी, दंगों की।

इसीलिए आज,
आदमी नहीं, पर
उनकी संख्या तो
हमें मालूम हो गई।
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