Sunday, August 7, 2011

मराठी माटी से --कभी मन चाहे

कभी मन चाहे

कभी मन चाहे बनूँ बवण्डर,
उन्मन होकर तेरे द्वार के
सारे दीप बुझाऊँ।

कभी मन चाहे बनूँ दामिनी,
संगमरमरी तेरे महल में
घुसकर जलूँ, जलाऊँ।

कभी मन चाहे बनूँ समंदर,
लाख लाख लहरों में तेरी
जीवन शांति डुबोऊँ।

कभी मन चाहे बनूँ दिनान्त,
सारा तेरा प्रकाश वैभव,
अंधकार बन पी लूँ।

कभी मन चाहे करूँ अघटित कुछ,
और तेरी बाहों में,
अनंतता को पाऊँ।
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