Sunday, August 7, 2011

मुक्तायन से -- मुक्त

मुक्त

तोडकर पिंजरा
उड चला पंछी
जखमाए पंखों से
बह चला रक्त
शस्य श्यामल भूमि पर
लाल रेषा टेढी-मेढी
आँकता हुआ ----

उड चला है अपने
घोंसले की ओर,
या शायद अपनी
मृत्यु की ओर।

आकाश माने उसे
करुणा पात्र पर,
छीन नही सकेगा
उसका रक्त-रंजित
आनंद व अभिमान,
कि पिंजरे को उसने
तोड दिया है।
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