Saturday, August 6, 2011

वादळवेल से -- पंख बिजली का

पंख बिजली का

गुनी ग्यानी कहते हैं
पंख नही होते बिजली के,
मैं अज्ञानी, मैं ना जानूँ
नियम तुम्हारी सृष्टि के।

किन्तु एक दिन टूट पडा
नभ मेरे ऊपर
बरसे घनघोर घटा,
तूफान बवण्डर।

फिर कडकी बिजलियाँ
काल - पक्षी मंडराए
तांडव करता प्रलय
मेरा घर कौन बचाए।

हुआ शांत जब, फिरसे
गगन हँसा ममता से,
वहीं औचक यह पंख मिल गया
ईंटों के मलबे से।

मैं कहता यह पंख बिजली का
गुणीजन कहें चाहें जो भी
नभ हो क्रोधित कभी कभी पर
दान भी देता कुछ यों ही।
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